
समुन्दर कीनारे , उस रेत में मेरी वह पद्छिन्न ....मैं बार बार देखता हूँ उन्हें मुड मुड़कर , और वह लहरें आतीं हैं और उन्हें मिटाकर चली जाती हैं! ...मेरे कदम रुकते हैं उन् लहरों के लिए ...वह आती हैं, पैरों से टकराती हैं और फिर चली जाती हैं! कुछ देर बाद देखता हूँ की मेरे वह पद्छिन्न अब ज़्यादा गहरे हैं और वह लहरें कोशिश कर रही हैं उन्हें मीटाने के लीए.. उन्हें देखकर मुझे यह ख़्याल आता है , की ज़िंदगी भी कुछ ऎसी ही है.... कुछ यादे उन् पद्छिं की तरह होती हैं... कभी यूँ ही मिट जाती हैं और कभी इतनी गहरी होती हैं की मिटने का नाम ही नहीं लेतीं !
सिर उठाकर देखता हूँ उस डूबते सूरज की लाली को...मानो किसी ने आस्मान में लाल स्याही भर दीं हो....सूरज डूबते हुए देखता है पूरब से बढती हुई रात की चादर को...और मॅन ही मन हस्ता है.....क्योंकि वह जानता है की कल सुबह उसके आने पर वही रात दूर भाग जाएगा.... इन्सान के जीवन में आशाएं उस सूरज की किरणों की तरह होती हैं....चाहे कितनी भी मुश्किलें आयें, सफलता उस पूरब के सूरज की तरह ज़रूर आती है!
सिर उठाकर देखता हूँ उस डूबते सूरज की लाली को...मानो किसी ने आस्मान में लाल स्याही भर दीं हो....सूरज डूबते हुए देखता है पूरब से बढती हुई रात की चादर को...और मॅन ही मन हस्ता है.....क्योंकि वह जानता है की कल सुबह उसके आने पर वही रात दूर भाग जाएगा.... इन्सान के जीवन में आशाएं उस सूरज की किरणों की तरह होती हैं....चाहे कितनी भी मुश्किलें आयें, सफलता उस पूरब के सूरज की तरह ज़रूर आती है!
1 comment:
Hi,
I have seen your blog unexpectedly. Nice posts.
But just one observation...
I think it should be, "DOOBTHEY SURAJ KA SABAQ".
Anyhow..good posts. Love to come back. Cheers.
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